धमाका: फिल्म समीक्षा

नीरजा मूवी को निर्देशित करने वाले राम माधवानी की नई मूवी 'धमाका' 19 नवंबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज की गई। इस फिल्म में स्टार कास्ट की भूमिका में कार्तिक आर्यन हैं जो अर्जुन पाठक का किरदार निभा रहें हैं जो कि एक न्यूज एंकर कम रेडियो जॉकी हैं। उनकी पत्नी सौम्या मेहरा पाठक का किरदार मृणाल ठाकुर ने निभाया है जो कि उसी चैनल में एक रिपोर्टर की भूमिका में हैं। वहीं इनके बॉस अंकिता का किरदार अमृता सुभाष ने शानदार अभिनय किया है। पूरा फिल्म इन्ही तीनों किरदार के आस-पास घूमता है। धमाका, कोरियाई मूवी 'द टेरर लाइव' का हिंदी रीमेक है। फिल्म को दर्शकों की मिली- जुली प्रतिक्रिया मिल रही है।

अब बात करते हैं मूवी की: स्टोरी की शुरुआत होती है एक डेमो जैसे वीडियो से जिसमे अर्जुन और उनकी पत्नी सौम्या के हैप्पी लाइफ को दिखाया गया है और ये वीडियो देख रहें हैं एक तलाकशुदा पति अर्जुन पाठक। अब आते हैं फिल्म की असली कहानी पर। ये शुरू होता है एक फोन कॉल से। सिस्टम से परेशान खुद को एक कंस्ट्रक्शन वर्कर बताने वाले कार्तिक के एफएम रेडियो भरोसा के शो में कॉल करता है और सीलिंग उड़ाने की धमकी देता है जिसे कार्तिक इग्नोर करते हैं और जिसके कुछ देर बाद सीलिंग उड़ा दी जाती है और फिर न्यूज चैनल को मिल जाती है एक कहानी। कॉलर की बस एक हीं मांग है "मंत्री जयदेव टीवी पर आकर उससे माफी मांग ले"। क्यों करना चाहता है वो ये? क्या उसकी मांग पूरी होती है? इतना बड़ा स्टेप लेने के पीछे क्या वजह है? और क्या इन सब बातों से अर्जुन पाठक के अतीत का भी कोई कनेक्शन है? ये सब आपको फिल्म देखकर हीं पता चलेगा। हालांकि निर्देशक राम माधवानी का कहना है कि ये फिल्म न्यूज चैनल के बारे में नहीं है यह एक व्यक्ति के संघर्ष के बारे में है लेकिन उनकी इस बात को मूवी बिलकुल भी जस्टिफाई नहीं करती है। फिल्म में निजी और व्यवसायिक उलझन को बखूबी दर्शाया गया है। फिल्म में कार्तिक आर्यन को दोहरे रूप में दिखाया गया है एक तरफ उनका अपने शो प्राइम टाइम को लेकर गलत से गलत भी कर जाना दूसरी तरफ रिपोर्टिंग कर रही उनकी पूर्व पत्नी के लिए उनका प्यार। हालांकि शो की प्रोड्यूशर और उनकी बॉस अंकिता एकदम स्ट्रिक्ट नजर आती हैं और उस किरदार को उन्होंने बखूबी निभाया है। फिल्म में उनका एक डायलॉग है " *पहले चैनल, फिर जर्नलिज्म* " जिसके द्वारा मीडिया पर कटाक्ष किया गया है। हालांकि फिल्म में दिखाया गई सारी बातें सही नहीं है। एक बात तो तय है फिल्म में समय का बिलकुल ख्याल रखा गया है आपका वक्त बिलकुल जाया नहीं करेगा इसलिए फिल्म को लंबा न करके 1 घंटे 44 मिनट का रखा गया है अगर चाहते तो इसे आराम से दो से ढाई घंटे खींच सकते थें। फिल्म एक एंकर और रिपोर्टर की बहादुरी भी दिखाती है कि कैसे किसी भी हालत में, कितने भी जोखिम में वे अपना काम करते हैं। लेकिन जिस तरह से राम माधवन ने नीरजा को प्रोड्यूस किया था उनसे दर्शक काफी उम्मीद लगाती है,कुछ नया देखना चाहती है, उस उम्मीद पर माधवन खरा नहीं उतर पाए। मोटा-मोटी कहें तो अगर आपको तोड़-फोड़ और एक्शन/ थ्रिलर मूवी अच्छी लगती है तो फिल्म आपके लिए है। और अगर आप एक मीडिया पर्सन हैं तब तो ये फिल्म आपको जरूर देखनी चाहिए।

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